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इन्द्रा॑ग्नी उक्थवाहसा॒ स्तोमे॑भिर्हवनश्रुता। विश्वा॑भिर्गी॒र्भिरा ग॑तम॒स्य सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indrāgnī ukthavāhasā stomebhir havanaśrutā | viśvābhir gīrbhir ā gatam asya somasya pītaye ||

पद पाठ

इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑। उ॒क्थ॒ऽवा॒ह॒सा॒। स्तोमे॑भिः। ह॒व॒न॒ऽश्रु॒ता॒। विश्वा॑भिः। गीः॒ऽभिः। आ। ग॒त॒म्। अ॒स्य। सोम॑स्य। पी॒तये॑ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:59» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:26» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्या क्या करके बिजुली की विद्या जानें, इस विषयको कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली के समान पदार्थों को जानते हुए (उक्थवाहसा) प्रशंसित विद्या की प्राप्ति कराने और (हवनश्रुता) हवनों को सुननेवालो ! तुम (स्तोमेभिः) प्रशंसाओं से और (विश्वाभिः) समस्त (गीर्भिः) विद्या और उत्तम शिक्षायुक्त वाणियों के साथ (अस्य) इस (सोमस्य) महौषधियों के रसके (पीतये) पीने को (आ, गतम्) आओ ॥१०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वे ही बिजुली की विद्या को जानने योग्य होते हैं, जो विद्वानों से विद्या पाने का प्रयत्न करते हैं ॥१०॥ इस सूक्त में इन्द्र और अग्नि के गुणों का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह उनसठवाँ सूक्त और छब्बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्याः किं कृत्वा विद्युद्विद्यां जानीयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्राग्नी जानन्तावुक्थवाहसा हवनश्रुता ! युवां स्तोमेभिर्विश्वाभिर्गीभिः सहास्य सोमस्य पीतय आ गतम् ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्राग्नी) वायुविद्युताविव (उक्थवाहसा) प्रशंसितविद्याप्रापकौ (स्तोमेभिः) प्रशंसाभिः (हवनश्रुता) यौ हवनानि शृण्वतस्तौ (विश्वाभिः) समग्राभिः (गीर्भिः) विद्याशिक्षायुक्ताभिर्वाग्भिः (आ) (गतम्) आगच्छतम् (अस्य) (सोमस्य) महौषधिरसस्य (पीतये) पानाय ॥१०॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। त एव विद्युद्विद्यां वेत्तुमर्हन्ति ये विद्वद्भ्यो विद्यां प्राप्तुं प्रयतन्त इति ॥१०॥ अत्रेन्द्राऽग्निगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकोनषष्टितमं सूक्तं षड्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्वानांकडून विद्या प्राप्त करण्याचा प्रयत्न करतात तेच विद्युत विद्या जाणण्यायोग्य असतात. ॥ १० ॥